संचालन के सिद्धांतों के कारण ही बैंकिंग, इंश्योरेंस और दूसरी फाइनेंशियल सेवाएं वाले उद्योग सदियों से स्थित हैं. ये सिद्धांत इन उद्योगों के संचालन का नियंत्रण करते हैं, जो डिलीवरी को मानक रूप देते हैं और आपस में जुड़े पक्षों और कस्टमर्स के लिए उन्हें अनुरूप बनाते हैं.
मरीन इंश्योरेंस कोई अलग नहीं है. यह एक बार में कई उद्योगों को प्रभावित कर सकता है – सेलर, डिस्ट्रीब्यूटर, ट्रेडर्स, लॉ एन्फोर्समेंट, टैक्स अथॉरिटीज़, बायर्स, इंश्योरर, लॉजिस्टिक्स कंपनियां और कई अन्य संस्थाएं. इसलिए, हर शिपमेंट की गतिविधि सुविधाजनक रूप से गतिशील रहे, इसे संभव बनाने के लिए उद्योग ने अपनाया है
मरीन इंश्योरेंस के सिद्धांत.
मरीन इंश्योरेंस के 5 सिद्धांत क्या हैं?
आमतौर पर इस्तेमाल होने वाले
मरीन इंश्योरेंस के सिद्धांत में छः सिद्धांत शामिल हैं. लेकिन ईमानदारी के सिद्धांत को अनिवार्य माना जाता है, जिस पर आमतौर पर सभी शामिल पक्ष सहमत होते हैं. इसके अनुसार, जब दो पक्ष, इंश्योर्ड पक्ष और इंश्योरेंस कंपनी सहमत हों, तो कार्गो की सारी जानकारी पूरी ईमानदारी से दी जाएगी. ईमानदारी के सिद्धांत के बाद बाकी पांच निम्न हैं:
- इन्डेम्निटी: यह सिद्धांत मरीन इंश्योरेंस पॉलिसी को पूंजी बाजारों के लिए बने किसी अनुमान-आधारित प्रॉडक्ट से अलग बनाता है. जैसे, पूंजी बाजारों में पुट या कॉल कॉन्ट्रेक्ट का इस्तेमाल हेजिंग करने और मुनाफा कमाने, दोनों के लिए हो सकता है. हालांकि, मरीन इंश्योरेंस के प्रकार के तहत ऐसे कई प्रकार के प्लान हैं, जिन्हें खास तौर पर नुकसानों से सुरक्षा देने के लिए डिज़ाइन किया गया है. इसलिए देय क्लेम, इंश्योर्ड कंपनी को हुए नुकसान से ज़्यादा कभी नहीं होगा.
- इंश्योरेबल इंटरेस्ट: इस सिद्धांत को लोकप्रिय कहावत 'स्किन इन द गेम' के समान माना जा सकता है. इसका मतलब है कि ट्रांज़िट साइकल के अंत तक आइटम को सुरक्षित रूप से पहुंचने के लिए इंश्योरेंस कंपनी का भी इंटरेस्ट होना चाहिए. अगर आइटम समय पर और बिना नुकसान के पहुंचता है, तो इंश्योर्ड कंपनी को फायदा होगा, और अगर आइटम अपने सही हालत में तय समय पर नहीं पहुंचता है, तो उसकी कंपनी को नुकसान होगा. अगर इंश्योर्ड कंपनी के नुकसान या फायदे को तुरंत वहन नहीं किया जाता है, तो कम से कम इस बात की उम्मीद होनी चाहिए कि वह जल्द वहन किया जाएगा या फायदा जल्द होगा. इस तरह, इंश्योरेंस कवर इंश्योर्ड कंपनी के ‘इंटरेस्ट’ यानि हितों की सुरक्षा करता है.
- प्रॉक्सीमेट कॉज़: अगर आप काल्पनिक रूप से किसी दार्शनिक की तरह सोचें, तो आप किन्हीं भी दो घटनाओं के बीच कोई न कोई अनुमानित कारण बना ही लेंगे. इस तरीके के इस्तेमाल से, एक कंपनी के रूप में आपके इंश्योरेंस क्लेम को लगभग किसी भी कारण से सही ठहराया जा सकता है, जो आपको इंश्योरेंस कंपनी के खिलाफ एक अनुचित लाभ देता है.
उदाहरण के लिए, मान लें कि आपने एक जहाज़ से एक कार्गो नीदरलैंड भेजा. रास्ते में कुछ समुद्री डाकुओं ने जहाज़ पर हमला करके आपके कार्गो को चोरी कर लिया. आपकी मरीन इंश्योरेंस पॉलिसी केवल कुदरती कारणों या डैमेज से हुए नुकसान को कवर करती है. अगर प्रॉक्सीमेट कॉज़ का सिद्धांत न होता, तो आप कह सकते थे कि किनारे के पास कोहरा होने के कारण अधिकारी समय रहते डाकुओं को देख नहीं पाए, इसलिए एक कुदरती कारण के चलते कार्गो चोरी हुआ है. यानि, प्रॉक्सीमेट कॉज़ का सिद्धांत यह कहता है कि इंश्योर्ड कंपनी, डैमेज होने के मामले में डैमेज का सबसे नज़दीकी और सबसे ज़्यादा मुमकिन कारण स्वीकार करेगी. इसके दूसरे पहलू की बात करें, तो अगर वह कारण इंश्योरेंस पॉलिसी की कवरेज में शामिल है, तो इंश्योरेंस कंपनी क्लेम सेटल करेगी, क्योंकि वह भी इसी सिद्धांत से बंधी हुई है.
- सब्रोगेशन: सब्रोगेशन का सिद्धांत, इन्डेम्निटी के सिद्धांत को लागू करने वाला सिद्धांत है. यह इंश्योरेंस कॉन्ट्रेक्ट से होने वाले लाभ के दायरे को सीमित करता है. डैमेज आइटम का निपटान करने के बाद, क्लेम के बाद आइटम की असल कीमत से ऊपर जो भी निवल राशि बचेगी, वह इंश्योरेंस कंपनी को लौटाना ज़रूरी होता है.
उदाहरण के लिए, मान लें कि आपने एक कार्गो पर रु. 5,00,000 का इंश्योरेंस लिया. जहाज़ पर हुई एक दुर्घटना में वह डैमेज हो जाता है. क्लेम में बताई गई पॉलिसी के अनुसार आपकी इंश्योरेंस कंपनी आपको रु. 4,90,000 चुकाती है. आप डैमेज आइटम रु. 20,000 में बेच देते हैं. जब यह राशि क्लेम राशि में जोड़ी जाती है, तो आपको मिला कुल कैश, आइटम की वैल्यू से रु. 10,000 ज़्यादा हो जाता है. सब्रोगेशन के सिद्धांत के तहत यह राशि इंश्योरर को लौटाई जानी चाहिए.
- कॉन्ट्रीब्यूशन: मरीन इंश्योरेंस में अक्सर ऐसे जटिल ट्रांज़िट कवर किए जाते हैं, जिनमें दो इंश्योरेंस कंपनियों की ज़िम्मेदारियां ओवरलैप होती हैं. दो अलग-अलग क्षेत्राधिकारों या पॉलिसी के तहत एक ही कार्गो को दो इंश्योरेंस कंपनियों द्वारा इंश्योर किया जाना असंभव नहीं है. अगर कार्गो डैमेज हो जाता है और क्लेम देय है, तो इंश्योरेंस कंपनियों को क्लेम की देनदारियां आपस में बांटनी होती हैं.
मरीन इंश्योरेंस के पांचों सिद्धांतों के बारे में जानने से आपको अपने इंश्योरेंस कॉन्ट्रैक्ट को समझने और बेहतर तरीके से उसका पालन करने में मदद मिल सकती है. बजाज आलियांज़ वेबसाइट पर हमारी
कमर्शियल इंश्योरेंस पॉलिसी के बारे में अधिक जानें.
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
- मरीन इंश्योरेंस के सिद्धांतों के उल्लंघन के बारे में रिपोर्ट करना किस समय महत्वपूर्ण हो जाता है?
उपनियमों के विपरीत, सिद्धांतों पर सहमति दो बातों पर होती है - या तो आपने उनका पालन किया है, या आपने नहीं किया है.
- मरीन इंश्योरेंस के सिद्धांतों को कौन नियंत्रित करता है?
वैसे तो जनरल इंश्योरेंस काउंसिल ऑफ इंडिया ने इन सिद्धांतों की लिस्ट बनाई है, लेकिन जिस समय आप किसी सिद्धांत का उल्लंघन करते हैं, उस समय आप किसी न किसी रूप में इंश्योरेंस कॉन्ट्रेक्ट का भी उल्लंघन करते हैं, जिससे यह मामला कानूनी रूप से लागू किए जाने योग्य बन जाता है. इंश्योरेंस कंपनी, इंश्योरेंस कॉन्ट्रेक्ट में लिखे क्षेत्राधिकार के अनुसार मामला अदालत में ले जा सकती है.
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