इंश्योरेंस संबंधी धोखाधड़ी की घटनाएं पिछले कुछ सालों में बढ़ी हैं और इसे पूरी तरह खत्म नहीं किया जा सका है. विभिन्न अनुमानों के अनुसार, ऐसी धोखाधड़ी के कारण भारतीय जनरल इंश्योरेंस इंडस्ट्री को एक वर्ष में रु. 2,500-3500 करोड़ के बीच नुकसान होता है. वास्तव में कस्टमर के लिए यह जानना निराशाजनक होगा! आइए, धोखाधड़ी से निपटने के कुछ उपायों के बारे में जानते हैं, जो इनसे जुड़ी होती हैं,-2-व्हीलर, 4-व्हीलर या
कमर्शियल वाहन इंश्योरेंस.
1) अपनी इंश्योरेंस कंपनी से संपर्क करें: यह सबसे आसान तरीका है, जिससे आप जान सकते हैं कि आपकी पॉलिसी सही है या नहीं. आप इंश्योरेंस कंपनी के कस्टमर केयर के पास ईमेल भेजकर या उसके टोल फ्री नंबर पर कॉल करके संपर्क कर सकते हैं. यह संपर्क जानकारी पॉलिसी डॉक्यूमेंट में लिखी होती है. अगर टोल फ्री नंबर उपलब्ध नहीं है, तो आप नज़दीकी ब्रांच ऑफिस जा सकते हैं. 2) रसीद मांगें: हमेशा प्रीमियम भुगतान की रसीद मांगें. कुछ कंपनियां पॉलिसी डॉक्यूमेंट में (प्रीमियम भुगतान की जानकारी में) इसका उल्लेख करती हैं, लेकिन मांगने पर अलग से प्रीमियम रसीद भी देती हैं. अगर आप कैश से भुगतान करते हैं, तो प्रीमियम भुगतान की रसीद मांगना और भी ज़रूरी है. यह चेक करें कि रसीद पर लिखी जानकारी, जैसे आपके द्वारा दिए गए चेक की जानकारी (चेक नंबर, तिथि, राशि, प्राप्तकर्ता बैंक) सही है. कृपया ध्यान दें कि पॉलिसी की वैधता, चेक की वैधता और क्लियरेंस पर निर्भर करेगी. 3) आईडीवी, एनसीबी और डिडक्टिबल चेक करें: पॉलिसी मिलने पर आपको आईडीवी (इंश्योर्ड डिक्लेयर्ड वैल्यू), एनसीबी (नो क्लेम बोनस) और डिडक्टिबल (जैसे स्वैच्छिक डिडक्टिबल, अनिवार्य डिडक्टिबल और अतिरिक्त अनिवार्य डिडक्टिबल) चेक करने चाहिए, ताकि यह कन्फर्म हो सके कि आपको मिली पॉलिसी असली है. पॉलिसी मिलने के समय इन चीज़ों को चेक करना मामूली लग सकता है, लेकिन क्लेम के समय ये बड़ी परेशानी का कारण बन सकती हैं. जैसे, हो सकता है कि आपका मौजूदा
कार इंश्योरेंस या टू व्हीलर इंश्योरेंस पिछली पॉलिसी पर किए गए क्लेम की गलत घोषणा के आधार पर जारी हुआ हो. पॉलिसी लेते समय यह किफायती मालूम हो सकता है, लेकिन जब आपकी मौजूदा इंश्योरेंस कंपनी को क्लेम के समय इसका पता लगेगा, तब यह बहुत महंगा पड़ेगा. कभी-कभी, आपका एजेंट आपको सर्वश्रेष्ठ किफायती डील देने के लिए भी लुभा सकता है. लेकिन प्रपोज़ल फॉर्म में जानकारी देते समय सही-सही खुलासा करना आपका कर्तव्य है. अगर एनसीबी का विवरण गलत हो जाए, तो तुरंत अपनी इंश्योरेंस कंपनी को इसके बारे में बताएं, ताकि बाद में क्लेम आसानी से सेटल हो सके. 4) प्रपोज़ल फॉर्म/कवर नोट पर हस्ताक्षर: अपनी ओर से किसी दूसरे व्यक्ति को प्रपोज़ल फॉर्म पर हस्ताक्षर न करने दें. हमेशा खुद हस्ताक्षर करें. ऐसा करना ज़रूरी है, क्योंकि आपको अपनी ज़रूरतें पता हैं और आप अपने वाहन से जुड़ी इंश्योरेंस संबंधी विशेषताओं को क्रॉस चेक कर सकते हैं. उदाहरण के लिए, अगर आपके वाहन में सीएनजी किट लगी है, जिसके बारे में एजेंट नहीं जानता है, तो वह लिख देता है कि कार पेट्रोल/डीज़ल पर चलती है. इससे आपको क्लेम के दौरान समस्या होगी. इसी तरह, आपके एजेंट से बेहतर आप जानते हैं कि आपका वाहन प्राइवेट के रूप में रजिस्टर्ड है या कमर्शियल के रूप में रजिस्टर्ड है. इसलिए, हमेशा खुद ही प्रपोज़ल फॉर्म/कवर नोट भरने और उस पर हस्ताक्षर करने की सलाह दी जाती है. अधिकतर प्राइवेट इंश्योरेंस कंपनियां द्वारा धोखाधड़ी रोकने के लिए सभी पॉलिसी को एक ही जगह से भेजने की व्यवस्था की गई है. वे प्रपोज़ल फॉर्म से मिलान के लिए पॉलिसी के ऊपर बार कोड भी प्रिंट करने लगी हैं. संक्षेप में, मन की शांति के लिए व्यक्ति को केवल मोटर इंश्योरेंस पॉलिसी का प्रीमियम ही नहीं चुकाना चाहिए, बल्कि उसकी वैधता भी चेक करनी चाहिए. बजाज आलियांज़ वेबसाइट पर कार, कमर्शियल और
बाइक इंश्योरेन्स ऑनलाइन के बारे में अधिक जानें.
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